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परखो तो कोई अपना नहीं

परखो तो कोई अपना नहीं, समझो तो कोई पराया नहीं।

मुसीबत के दिन गुजर जायेंगे, आज जो मुझे देखके हंसते है, वो कल मुझे देखते रह जायेंगे।

अकड़ती जा रही हैं हर रोज गर्दन की नसें, आज तक नहीं आया हुनर सर झुकाने का।

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झुकता वही है जिसमें जान होती है, अकडना तो लाश की पहचान होती है।

जो आदमी लिमिट में रहता हैं, वो ज़िन्दगी भर लिमिट में ही रह जाता हैं।

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